Sunday 28 February 2016

पत्रकारिता का नया चेहरा

आज रविवार है। सुबह सुबह थोड़ी फुर्सत इसलिए भी है क्योंकि कल शनिवार था और कल भी छुट्टी थी जिससे सप्ताह के काम निपटाने के लिए अच्छा समय मिल गई थी। इसलिए आज मैंने एक हिंदी अख़बार को ठीक से पढ़ने का मन बनाया है। सिर्फ एक दिन के अंक को पढ़कर, और ठीक से पढ़ कर, मैं आपको बताता हूँ की ये अख़बार वास्तव में क्या , क्यों और कैसे लिख रहा है। मेरे हाथ में है "NBT संडे नवभारत टाइम्स" है मैं अपने चश्मे से आपको पढ़ कर बताता हूँ कि इस अख़बार ने कितनी चतुराई से मेरे और आपके जैसे सीधे सादे सामान्य जनो के सोच को प्रभावित करने के उदेश्य से शब्दों का कैसा खेल खेला है। मैं आज के अंक के संपादकीय, वरिष्ट संवाददाता, विस (विशेस संवाददाता) के नाम पर छपी रिपोर्ट का गर्हित अन्वेषण कर रहा हूँ। आज के अंक में NBT ने JNU घटना पर रिपोर्टिंग के क्रम में मुख्य पृष्ट पर मोटे शीर्षक " मुझे पुलिस के सामने पीटा गया" (एजेंसियां/वरिष्ठ संवाददाता) के साथ अख़बार सनसनीखेज तरीके से लिखता है "जाँच पैनल के साथ बातचीत का नया वीडियो सामने आया"। जबकि यह जाँच कमिटी के सामने कन्हैया के बयान का एक हिस्सा है। यह अलग और गंभीर प्रश्न है कि जाँच कमिटी कि रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायलय की संपत्ति है और अभी तक इसे सार्वजानिक नहीं किया गया है। अख़बार इस लेख में इन आरोपियों को सम्मान जनक रूप से उधृत करते हुए " हैं " का प्रयोग करता है जबकि वहीँ मानव संसाधन विकाश मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी को बार-बार "स्मृति" या "ईरानी" से संबोधित कर रहा है। यह स्पष्ट रूप से बहुत ही प्रचलित और कुटिल उपचार है, जनमत को प्रभावित करने का जिसमे ब्यक्तित्यों के अंतर का समतलीकरण किया जाता है। इस सूत्र का प्रयोग कांग्रेस कई अवसरों पर सार्वजनिक रूप से करती हुई पकड़ी गई है। "हाफिज सईद जी" वाला प्रकरण सबको विदित है। यद्यपि यह बुद्धिजीवियों और राजनीतिज्ञों के अंतःपुर की खिचड़ी (क्षमा) है जिसे दिग्विजय सिंह और अखबारी संवाददाताओं जैसे सतही रसोइयों ने पकाना और परोसना सुरु कर दिया है। आज के अंक में ही दूसरे लेख में विशेष संवाददाता " ईरानी पर सीधी जंग - कांग्रेस, लेफ्ट, JDU लाएंगे विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव' इस लेख में अचानक अख़बार लिखता है- सरकार ईरानी के साथ: -सरकार फ़िलहाल (?) इस मुद्दे पर एचआरडी मिनिस्टर के ईरानी के पक्ष में खड़ी रहेगी। -विपक्ष को करारा (जवाब) दिया जाये, आरोप लगाया जाये की सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है। -जेएनयू मामले को हवा देकर साबित करने की कोशिश की जाये कि विपक्ष राष्ट्र विरोधियों का पक्ष ले रहा है। यह है कुटिल पत्रकारिता और सड़यंत्रकारी सोंच का नमूना। " फिलहाल.." , "आरोप लगाया जाये...", और जेएनयू मामले को हवा देकर साबित करने कि कोशिश की जाये...." क्या ये भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों ने इस पत्रकार को बताया है। क्या ये तथाकथित विस्वस्त सूत्रों से इस संवाददाता को पता चला है। या फिर इस विस ( विशेष संवाददाता ) की खुराफाती और पूर्वाग्रही दिमाग की कुत्सित चाल है। जनमानस के सोच को प्रभावित करने के उदेश्य से शब्दों का चयन और वाक्यों का विन्यास स्पष्ट रूप से परिलक्षित करता ये अख़बार अपने अंतःकरण में कितना कलुषित है, समझ से परे है। अखबारी पत्रकारिता में भाषाई और शाब्दिक कुटिलता पर एक चिंतन।। क्लिष्ट (?) हिंदी के लिए क्षमा।

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